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सेवा क्यों करें ?

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एक दिन शरीर की कर्मेन्द्रियों ने सोचा कि हम लोग परिश्रम करते-करते मरे जाते हैं और यह पेट हमारी कमाई को यों ही मुफ्त में हजम करता रहता है। हाथ, पाँव, आँख, कान आदि ने इस बात पर बड़ा असन्तोष प्रकट किया कि हम दिनभर पिसते हैं, फिर क्या कारण है कि दूसरे हमारे परिश्रम का फल भोंगे और हम यों ही रह जावें। यदि हम कमावेंगे तो हम ही खावेंगे अन्यथा काम न करेंगे और हड़ताल करके बैठे रहेंगे। पेट ने सब अंगों को बुलाया और समझाया कि पुत्रो ! मैं तुम्हारी कमाई को खुद नहीं रख लेता हूँ, जो कुछ तुम मुझे देते हो उसे बड़े परिश्रम के साथ तुम्हारी शक्ति बढ़ाने के लिये द्रव्य बनाता हूँ और उसे तुम्हारी भलाई में खर्च करता रहता हूँ। यह क्रिया तुम्हें आँखों से नहीं दीखती, फिर भी विश्वास रखो तुम्हारा परिश्रम अप्रत्यक्ष रूप से तुम्हें वापस मिल जाता है। इसलिये हड़ताल मत करो, वरन् अधिक उत्साहपूर्वक काम करो जिससे मैं तुम्हें अधिक लाभ पहुँचा सकूँ और हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान बना सकूँ । यह बात किसी इन्द्रिय की समझ में न आई । उन्होंने कहा तुम पूँजीपति हो, ऐसी ही मीठी-मीठी बातें बनाकर हमारा शोषण करते रहते हो। हम तो अब अपना परिश...