भय ही मृत्यु क्यों?
गरुड़ को द्वार पर ही छोड़कर भगवान विष्णु भीतर चले गये। विश्व व्यवस्था पर उन्हें शिवजी से देर तक चर्चा करनी थी। इतना समय कैसे काटा जाये ? अभी द्वार पर रुके गरुड़ यह सोच ही रहे थे कि उन्हें समीप ही दाने चुग रहा एक कपोत दिखाई दिया। उन्होंने संकेत से कपोत को समीप बुलाया और समय काटने के लिए उससे बातचीत प्रारम्भ कर दी। अभी वार्ता अच्छी तरह प्रारम्भ भी न हो पाई थी कि यमराज आ धमके। उन्होंने कबूतर की ओर एक अर्थपूर्ण दृष्टि डाली और न जाने क्या सोचकर हँस दिये। फिर बिना कुछ कहे अन्दर चले गये। यमदेव का अपनी ओर दृष्टिपात करके हँसना था कि कबूतर के प्राण सूख गये। कम्पित स्वर में उसने गरुड़ से कहा - " तात् ! यमदेव की हँसी अकारण नहीं हो सकती है। वे त्रिकालदर्शी और मृत्यु के देवता हैं , अवश्य ही मेरी मृत्यु आ गई है। इसीलिए वे मुझे देखकर हँसे। बन्धु ! मेरी सहायता करो , मुझे अविलम्ब यहाँ से हटाकर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो " ...