देश में एक पहुँचे हुए सन्यासी रहते थे - वे प्रख्यात थे कि उनके इलाज से कठिन रोगों के रोगी अच्छे हो जाते हैं। एक सरदार सिर दर्द की बीमारी से बहुत दुःखी थे। उन्हें चारपाई पर छट - पटाते हुए ही दिन गुजारना पड़ता था। बहुत इलाज कराने पर भी जब कोई लाभ न हुआ तो लोगों ने उसे सन्यासी की ही दवा लेने के लिए कहा। सामन्त ने अपने गुमाश्ते नाम के व्यक्ति को बढ़िया सवारी लेकर सन्यासी के पास भेजे और प्रारम्भिक भेंट धन देने के अतिरिक्त इलाज का भारी इनाम मिलने का भी सन्देश भिजवाया। गुमाश्ते नियत स्थान पर पहुँचे। वहाँ एक हृष्ट - पुष्ट गाय चराने वाले के अतिरिक्त और कोई दिखाई न पड़ा। उन्होंने उसी से सन्त का पता पूछा। गाय चराने वाले ने कहा – ' मैं ही वह सन्यासी हूँ। " इस पर उन्हें बहुत अचम्भा हुआ। इतना बड़ा सन्त और चिकित्सक गाय चराने जैसा काम करे , इस जिज्ञासा को उन्होंने प्रस्तुत किया तो सन्त ने इतना ही कहा —' मैं प...
कौरवों ने जब पाण्डवों को एक सुई के बराबर भूमि देने में भी आना - कानी की और भगवान कृष्ण के समझाने पर वह नहीं माने तो इसका परिणाम महाभारत के रूप में आया , जिसमें भारतवर्ष के प्रत्येक राजा ने भाग लिया था। असंख्य व्यक्ति परलोक सिधारे , करोड़ों रुपए की हानि हुई। दुर्योधन और उसके साथियों की हार हुई और पाण्डवों की विजय नेत्रहीन महाराज धृतराष्ट्र अपने लड़कों के मारे जाने के कारण बहुत दुःखी रहने लगे। स्थूल नेत्र तो पहिले ही भगवान ने उनसे छीन रखे थे , जिसके कारण वह इसके भौतिक संसार को देखने में असमर्थ थे , परन्तु अब उनके मन में भी अंधकार छा गया , मानो उनके लड़के उनके मन के प्रकाश दीप थे। उनकी आँखों से ओझल होने से उनके मन का दीप भी बुझ गया। महाराज युधिष्ठिर उनका बहुत सम्मान करते थे और इस बात का ध्यान रखते थे कि उनसे कोई ऐसी बात न हो जाये जिससे उनके मन को धक्का लगे परन्तु फिर भी वह निरन्तर दुःखी रहा करते थे। महात्मा विदुर संन्यास आश्रम ...
किसी मनुष्य को पता चला कि दुनिया में एक अमृत फल है , जिसे मिल जाता है वह तन्दुरुस्त और खुश हो जाता है , ज्यादा उम्र पाता है , अतः उसे अमृत फल पाने का शौक हुआ। आदमी सीधा - साधा परन्तु धुन का पक्का था , लोगों से पूछता , क्यों भाई ऐसा फल कहाँ होता होगा , अगर मिले तो मैं भी उसे खाऊँ और बहुत दिन जीऊँ। कोई कुछ कहता और कोई कुछ कहता , जितनी मुँह उतनी बात , किसी ने साफ नहीं बताया। लगन बुरी होती है , उसे अमृतफल की लगन लग गई और घर से उसी की तलाश में निकल पड़ा , कोई राजा के बाग में देखने को कहता तो वह बाग में देखने राजा - महाराजाओं के बगीचों को ढूँढ़ता फिरता। कभी जंगल पहाड़ खोजता । कोई सुनकर पागल कहता , कोई हँस पड़ता , कोई सोचने लगता कि भगवान की सृष्टि में सब कुछ मुमकिन है । लोगों के ऐसे उत्तरों से वह परेशान हो जाता परन्तु हिम्मत न हारी। खोजने वाला ही पाता है। खोजते - खोजते आखिर उसे एक बुजुर्ग बुड्ढ...
दो हजार वर्ष पहले की बात है कि उज्जयिनी नगरी में एक युवक रहता था वह रूप गुण सम्पन्न था , पर उसे एक दमड़ी की भी आमदनी नहीं होती थी। वह गर्भ दरिद्र था , तो भी वह स्वभाव से पराक्रमी और साहसी था। गरीबी की कठोर ठोकरें खाने पर भी उसने कभी नीति का त्याग नहीं किया था। जब अनेक प्रयत्न करने पर भी उसे स्वदेश में सफलता न मिल सकी , तो एक भट्टमात्र नामक सच्चे मित्र को लेकर परदेश को रवाना हो गया। उस समय एक ऐसी जनश्र...
प्रियदर्शी सम्राट अशोक के विशाल साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और गंगा का मनोरम तट , जहाँ सम्राट अपने मन्त्रियों , सेनापतियों तथा पुरोहितों सहित उसके जल के उतार - चढ़ाव को देख रहे थे। गंगा का जल खतरे के चिह्न से ऊपर बढ़ता जा रहा था , विकराल वेग को देखकर सम्राट आशंकित थे। हो सकता है थोड़ी ही देर बाद विपुल जलराशि किनारों की उपेक्षा कर राजधानी को अपने में समेटने के लिए उतावली हो जाये । सम्राट के चेहरे पर बनती - बिगड़ती रेखाओं को देखकर यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था कि वह विनाशलीला की कल्पना मात्र से ही कितने चिंतित हैं ? बाढ़ के सनसनाते हुये जल को उन्होंने एक बार देखा और दूसरी बार उनकी दृष्टि पास में खड़े महामन्त्री के चेहरे से टकराई। उन्होंने मन्त्री की आँखों में आँखें डालकर अपनी चिन्ता व्यक्त करनी चाही और समस्या का समाधान भी। सम्राट ने बड़े दुःखी स्वर में कहा ' क्या अपने साम्राज्य में ऐसी कोई पुण्य आत्मा नहीं , जो इस भीषण...
तीन शूरवीर कहीं किसी कार्य वश जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि एक यात्री को रास्ते में किसी ने मार कर डाल दिया है। इस घटना पर दुःखी होते हुए वे आगे चले जा रहे थे कि एक विधवा स्त्री दिखाई पड़ी , जिसका सारा धन - धान्य दूसरे लोगों ने छीन लिया था और उसे मारपीट कर घर से भगा दिया था। इस घटना से भी उन्हें बड़ा कष्ट हुआ। आगे चलकर देखते हैं कि बाधक लोगों ने बहुत से निरपराध पशु - पक्षियों को मार - मार कर इकट्ठा कर लिया है। इससे आगे चले तो देखा कि एक से बाहर पड़ा हुआ किसान का परिवार झोंपड़ी से बाहर बिलख - बिलख कर रो रहा है और जमींदार के आदमी लगान के लिए उसके बर्तन कपड़े तक उठाये ले जा रहे हैं और उन्हें बार - बार मार पीट रहे हैं। इन घटनाओं को देखकर उन तीनों का दिल पिघल गया और वे एक स्थान पर बैठकर सोचने लगे कि दुनिया में इतना पाप कैसे बढ़ता जा रहा है ? जिसके कारण लोग इस प्रकार दुःखी हो रहे हैं। उन्होंने विचार किया क...
भाई परमानन्द क्रान्तिकारियों में अप्रतिम साहस के लिए प्रसिद्ध थे। कैसी भी संकटपूर्ण घड़ी में भी उन्होंने भयभीत होना नहीं सीखा था इसीलिये कई बार वह ऐसे काम कर लाते थे जो और कोई भी बुद्धिमान क्रान्तिकारी नहीं कर पाता था। साहस को इसी से तो मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी योग्यता कहा गया है। हिम्मत न हो तो बड़ी-बड़ी योजनायें धरी की धरी रह जाती हैं। पर साहसी व्यक्ति रेत में भी फूल उगा लाता है। बम बनाने की योजना बनाई गई। विस्फोटक पदार्थ आदि और सब सामान तो जुटा लिया गया पर बर्मों के लिए लोहे के खोल (शेल) कहाँ से आयें यह एक समस्या थी। ऐसी घड़ी में भाई परमानन्द को याद किया गया । बड़ी देर तक विचार करने के बाद उन्होंने एक योजना बना ही डाली। काम था जोखिम का पर "हिम्मते मरदां मददे खुदा" वाली कहावत सामने थी, भाई परमानन्द ने अमरसिंह को साथ लिया और वहाँ से चल पड़े। उन्होंने अमरसिंह को सारी योजना समझाई। अमरसिंह को एकाएक तो विश्वास नहीं हुआ कि अंग्रेजों को चकमा देकर बर्मों के खोल कैसे बनवाये जा सकते हैं ? पर वह परमानन्द की हिम्मत को जानते थे, इसलिये साथ-साथ जीने मरने के लिए तैयार हो गये। अगले ही ...
कर्मफल की सच्चाई (Truth of karma) शाल्वन नगर के राजा सोमक के कोई सन्तान न थी। वे सन्तति प्राप्ति के लिए बड़े आतुर रहते , जिसे किसी लौकिक पदार्थ की अत्यन्त तृष्णा होती और उसे पाने के लिए विवेक छोड़ देता है , उस मनुष्य को या तो वह वस्तु प्राप्त ही नहीं होती या होती है , तो बड़े और विकृत प्रकार की , क्योंकि तृष्णा और अविवेक की आसुरी छाया पड़ने के कारण उसमें तामसी तत्व मिल जाते हैं , तद्नुसार उस वस्तु की आकृति बड़ी कुरूप हो जाती है। आखिर सोमक को एक पुत्र प्राप्त हुआ , पर वह अत्यन्त लालची और तृष्णा के कारण एक जन्तु की तरह था। सारे अंग उसके बड़े बेडौल थे। कोई अंग किसी जन्तु से मिलता - जुलता था , तो कोई किसी से । स्त्री के पेट से पैदा हुआ यह पशु रूपधारी बालक एक विचित्र आकृति का था , उसे देखने के लिए दूर - दूर से लोग ...
मगध देश का एक राजा था। उसका नाम था चित्रांगद । वह अपनी प्रजा के सुख-दुःखों का पता लगाने के लिए राज्य भर में भ्रमण करने निकला। पुराने जमाने में यात्रा के आज जैसे साधन न थे। रेल और मोटरें थी नहीं, पक्की सड़कें भी कम थीं। दूर देश जाने के लिए घने जंगलों को पार करना पड़ता था। राजा अपनी यात्रा करते हुए एक बड़े जंगल से होते हुए निकले। दिनभर की यात्रा से सब लोग थक गये थे। वे कहीं विश्राम करने की फिक्र में ही थे कि सामने एक सुन्दर सरोवर दिखाई दी। चारों ओर हरियाली थी, सुन्दर पुष्प खिले हुए थे, पक्षियों के कलरव से वह स्थान बड़ा शोभायमान हो रहा था। इस रमणीक स्थान को देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और रात को वहीं डेरा डाल देने का हुक्म दे दिया। सब लोग अपनी थकावट मिटाने लगे। पास में कुटी दिखाई दी। राजा ने नौकरों को पता लगाने भेजा— "देखो तो इस कुटी में कौन रहता है ?" नौकर वहाँ पहुँचे। देखा कि एक महात्मा भगवान का भजन कर रहे हैं। नौकरों ने जो देखा था राजा को बता दिया। राजा ने सोचा इस एकान्त वन में भजन करने वाला साधु निश्चय ही धनाभाव के कारण कष्ट उठाता रहता होगा। हम आज इसके आश्रम में आये हैं, राजा...
संवेदना के मर्म में ही पूर्णता प्राचीन समय में एक नगर में कण्व नाम का व्यक्ति रहता था । वह काफी कष्टों के साथ समय व्यतीत कर रहा था । कभी साधनों का अभाव , कभी आजीविका का कभी ज्ञान का अभाव , कभी विवेक का कभी शक्ति का अभाव , कभी सामर्थ्य का। सब मिलकर इतने जीवन में कण्व को न कहीं शान्ति मिली न ही सन्तोष। उन्हें मनुष्य जीवन में सर्वत्र अपूर्णता ही अपूर्णता दिखाई दी। शरीर भी न अपनी इच्छा से मिलता है , न स्वेच्छा से ,...
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