निर्भयता अपराजेय है
" साधुओं में से एक ने सेनापति से पूछा। " आप सब कहाँ जा रहे हैं , पंचनद के ये बहुमूल्य घोड़े , हाथी और खजाना किसकी भेंट के लिए जा रहा है ? सैनिकों के बुझे चेहरे , सेनापति का मलिन मुख सेना की यह मौन यात्रा सब कुछ विचित्र लगा। कहाँ तो पंचनद की विजयवाहिनी रण - वार्थो का घोष करते हुए निकला करती थी , चारों ओर विजय का उल्लास फैलता दिखता था। और आज ? कोई आगे कुछ सोचे , इसके पहले महासेनापति ने कातर स्वर से कहा - " भगवन् ! महाराज देवदर्शन की आज्ञा से हम सिकन्दर के लिए सन्धि प्रस्ताव लेकर जा रहे हैं। सैनि...