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विचार पूर्वक कार्य करने का शुभ परिणाम

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  गंगा के पवित्र तट पर एक गुरुकुल स्थापित था , जिसमें एक ऋषि कुटुम्ब निवास करता था। ऋषिराज महाज्ञानी , महापवित्र , महातपस्वी थे और इनके चरणों में बैठकर विद्याभ्यास करने के लिये दूर - दूर के विद्यार्थी आया करते थे। इन ऋषिराज को एक बालक बहुत बड़ी आयु में प्राप्त हुआ। इसलिये उसका लाड़ - दुलार कुछ अधिक किया जाता था। बालक - सुन्दर था और उसे सब प्यार करते थे। उसमें बालकपन से ही बाप के ज्ञान , तप और विद्या के चिन्ह दिखलाई पड़ते थे। पर बालक बड़ा विचित्र था और उसकी विचित्र बातों को देखकर ऋषिराज को कभी - कभी बड़ी चिन्ता हो जाती थी। इस बालक को आरम्भ ही से प्रत्येक विषय में सर्वग्राही विचार करने की आदत थी। वह नदी में नहाने जाता , पर नहाते समय विचार करने लगता कि नदी में पानी कहाँ से आया ? क्यों आया ? आने का कारण क्या है ? वह नहाने की बात तो भूल जाता और इस प्रकार के अनेक तर्क - वितर्कों में डूब जाता। वह किसी के सामने अपने विचारों को प्रकट कर...