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संन्यासी कौन ?

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उन दिनों विवेकानन्द भारत भ्रमण के लिये निकले हुए थे। इसी क्रम में घूमते हुए एक दिन हाथरस पहुँचे। भूख और थकान से उनकी विचित्र हालत हो रही थी। कुछ सुस्ताने के लिये वे एक वृक्ष के नीचे निढाल हो गये। अरुणोदय हो चुका था। उसकी सुनहरी किरणें स्वामी जी के तेजोद्दीप्त चेहरे पर पड़कर उसे और कान्तिवान बना रही थीं। इसी समय उधर से एक युवक निकला। स्वामी जी के आभावान चेहरे को देखकर ठिठका। अभी वह कुछ बोल पाता , इससे पूर्व ही उनकी आँखें खुली और एक मृदु हास्य बिखेर दिया। प्रत्युत्तर में युवक ने हाथ जोड़ लिये और आग्रह भरे स्वर में कहा - " आप कुछ थके और भूखे लग रहे हैं। यदि आपत्ति न हो , तो चलकर मेरे यहाँ विश्राम करें। " बिना कुछ कहे स्वामी जी उठ पड़े और युवक के साथ चलने के लिये राजी हो गये। चार दिन बीत गये। नरेन्द्र अन्यत्र प्रस्थान की तैयारी करने लगे। इसी समय वह युवक उनके समक्ष उपस्थित हुआ चल पड़ने को तैयार देख उसने पूछ लिया " ...