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देशरक्षा के लिए कर्त्तव्यनिष्ठा की आवश्यकता (The need for duty to protect the country)

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  प्रियदर्शी सम्राट अशोक के विशाल साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और गंगा का मनोरम तट , जहाँ सम्राट अपने मन्त्रियों , सेनापतियों तथा पुरोहितों सहित उसके जल के उतार - चढ़ाव को देख रहे थे। गंगा का जल खतरे के चिह्न से ऊपर बढ़ता जा रहा था , विकराल वेग को देखकर सम्राट आशंकित थे। हो सकता है थोड़ी ही देर बाद विपुल जलराशि किनारों की उपेक्षा कर राजधानी को अपने में समेटने के लिए उतावली हो जाये । सम्राट के चेहरे पर बनती - बिगड़ती रेखाओं को देखकर यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था कि वह विनाशलीला की कल्पना मात्र से ही कितने चिंतित हैं ? बाढ़ के सनसनाते हुये जल को उन्होंने एक बार देखा और दूसरी बार उनकी दृष्टि पास में खड़े महामन्त्री के चेहरे से टकराई। उन्होंने मन्त्री की आँखों में आँखें डालकर अपनी चिन्ता व्यक्त करनी चाही और समस्या का समाधान भी। सम्राट ने बड़े दुःखी स्वर में कहा ' क्या अपने साम्राज्य में ऐसी कोई पुण्य आत्मा नहीं , जो इस भीषण...

कर्मफल की सच्चाई (Truth of karma)

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  कर्मफल की सच्चाई (Truth of karma)                             शाल्वन नगर के राजा सोमक के कोई सन्तान न थी। वे सन्तति प्राप्ति के लिए बड़े आतुर रहते , जिसे किसी लौकिक पदार्थ की अत्यन्त तृष्णा होती और उसे पाने के लिए विवेक छोड़ देता है , उस मनुष्य को या तो वह वस्तु प्राप्त ही नहीं होती या होती है , तो बड़े और विकृत प्रकार की , क्योंकि तृष्णा और अविवेक की आसुरी छाया पड़ने के कारण उसमें तामसी तत्व मिल जाते हैं , तद्नुसार उस वस्तु की आकृति बड़ी कुरूप हो जाती है।   आखिर सोमक को एक पुत्र प्राप्त हुआ , पर वह अत्यन्त लालची और तृष्णा के कारण एक जन्तु की तरह था। सारे अंग उसके बड़े बेडौल थे। कोई अंग किसी जन्तु से मिलता - जुलता था , तो कोई किसी से । स्त्री के पेट से पैदा हुआ यह पशु रूपधारी बालक एक विचित्र आकृति का था , उसे देखने के लिए दूर - दूर से लोग ...