भय ही मृत्यु क्यों?

 

गरुड़ को द्वार पर ही छोड़कर भगवान विष्णु भीतर चले गये। विश्व व्यवस्था पर उन्हें शिवजी से देर तक चर्चा करनी थी। इतना समय कैसे काटा जाये ? अभी द्वार पर रुके गरुड़ यह सोच ही रहे थे कि उन्हें समीप ही दाने चुग रहा एक कपोत दिखाई दिया। उन्होंने संकेत से कपोत को समीप बुलाया और समय काटने के लिए उससे बातचीत प्रारम्भ कर दी।

अभी वार्ता अच्छी तरह प्रारम्भ भी हो पाई थी कि यमराज धमके। उन्होंने कबूतर की ओर एक अर्थपूर्ण दृष्टि डाली और जाने क्या सोचकर हँस दिये। फिर बिना कुछ कहे अन्दर चले गये। यमदेव का अपनी ओर दृष्टिपात करके हँसना था कि कबूतर के प्राण सूख गये। कम्पित स्वर में उसने गरुड़ से कहा- "तात् ! यमदेव की हँसी अकारण नहीं हो सकती है। वे त्रिकालदर्शी और मृत्यु के देवता हैं, अवश्य ही मेरी मृत्यु गई है। इसीलिए वे मुझे देखकर हँसे। बन्धु ! मेरी सहायता करो, मुझे अविलम्ब यहाँ से हटाकर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो "

 

गरुड़ हँसे और कहने लगे, "मित्र ! जिस तरह आपातकालीन परिस्थितियों में राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी मन्त्रणाएँ करते और आपातकालीन परिस्थितियों से निबटने के उपाय ढूँढ़ते हैं वैसे ही संसार की बिगड़ती स्थिति को सुधारने के उपायों पर विचार करने के लिए भगवान विष्णु को शिवजी ने बुलाया है, यमराज भी इस वार्ता में सहायक होंगे इसीलिए वे यहाँ आये हैं, तुम निरर्थक भय मत करो। मित्र ! नीति कहती है भय आधी मृत्यु है, इसलिए किसी को अकारण भय नहीं करना चाहिए, जो अवश्यम्भावी है उसके लिए तो भय करना और भी मूर्खता है। उस परिस्थिति के लिए तो शूरवीरों की तरह तैयार रहना चाहिए।"

 

गरुड़ ने बहुतेरा समझाया पर भीत-कपोत की समझ में कुछ आया। उसके मस्तिष्क ने विचार करना तक छोड़ दिया। सच है भयग्रस्त व्यक्ति इसी कारण एक संकट से अनेक संकट स्वतः पैदा कर लेते हैं।

उसने गरुड़ से कहा- "तात् ! आप तो मुझे विन्ध्याचल की नीलाद्रि गुफा तक पहुँचा दीजिये, वहाँ मैं पूर्ण सुरक्षित रहूँगा। गरुड़ ने बहुतेरा समझाया-“अभी यमराज आते होंगे उन्हीं से पूछकर शंका-समाधान कर लिया जाय पर कबूतर के मस्तिष्क में पूर्वाग्रह का अज्ञान छा गया था। उसने एक भी सुनी अन्ततः गरुड़ को उसकी प्रार्थना स्वीकार ही करनी पड़ी। चटपट अपनी पीठ पर बैठाकर वे कबूतर को विन्ध्याचल ले जाकर नीलाद्रि में आये।" गुफा में छोड़ आये "

 

गरुड़ लौटकर अभी एक क्षण विश्राम भी कर सके थे कि भीतर से यमदेव निकल आये। वहाँ कबूतर को पाकर उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने गरुड़ से प्रश्न किया, "तात् ! आपके पास कुछ समय पूर्व जो कपोत क्रीड़ा कर रहा था वह कहाँ गया ?" गरुड़ ने हँसकर कहा- "महाराज ! आपकी यह विकराल दाढ़, लम्बी मूँछे और भयंकर आकृति, उस पर आपकी असामयिक हँसी ने उस बेचारे को भयग्रस्त कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह माना नहीं, अभी-अभी उसे विन्ध्याचल एक सुरक्षित स्थान पर छोड़कर रहा हूँ।" यमराज कुछ गम्भीर होकर पूछने, “लगे आपने वहाँ और किसी को तो नहीं देखा " गरुड़ ने कहा, "नहीं-हाँ जिस गुफा में उसे छोड़कर आया उसके अन्दर जाते हुए किसी बिल्ली के पंजों के निशान मैंने अवश्य देखे क्यों कोई बात है क्या ?"

"यमराज ने कहा" हाँ बात होती तो पूछता क्यों ?" "तात्मैं यहाँ से निकला तो मैंने कबूतर कं मस्तक पर विधि का एक लेख पढ़ा-लिखा था एक घड़ी बाद उसे विन्ध्याचल की एक बिल्ली खा जायेगी। मैंने उसे शिव लोक में देखकर विचार किया था कि ब्रह्माजी भी कभी-कभी कितनी भूल करते हैं कहाँ विन्ध्याचल-कहाँ शिव लोक-पर अब स्पष्ट हो गया कि वैसे चाहे कबूतर बच जाता, पर उसके भय ने लगता है ब्रह्माजी के लेख को सचमुच सत्य कर दिया।" बेचारा कबूतर उस गुफा भी बच सका अन्त में बिल्ली ने उसे यथासमय खा ही लिया।

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