अमृत फल' घर में ही होता है

      


किसी मनुष्य को पता चला कि दुनिया में एक अमृत फल है, जिसे मिल जाता है वह तन्दुरुस्त और खुश हो जाता है, ज्यादा उम्र पाता है, अतः उसे अमृत फल पाने का शौक हुआ। आदमी सीधा-साधा परन्तु धुन का पक्का था, लोगों से पूछता, क्यों भाई ऐसा फल कहाँ होता होगा, अगर मिले तो मैं भी उसे खाऊँ और बहुत दिन जीऊँ। कोई कुछ कहता और कोई कुछ कहता, जितनी मुँह उतनी बात, किसी ने साफ नहीं बताया।

 लगन बुरी होती है, उसे अमृतफल की लगन लग गई और घर से उसी की तलाश में निकल पड़ा, कोई राजा के बाग में देखने को कहता तो वह बाग में देखने राजा-महाराजाओं के बगीचों को ढूँढ़ता फिरता। कभी जंगल पहाड़ खोजता कोई सुनकर पागल कहता, कोई हँस पड़ता, कोई सोचने लगता कि भगवान की सृष्टि में सब कुछ मुमकिन है लोगों के ऐसे उत्तरों से वह परेशान हो जाता परन्तु हिम्मत हारी।

 खोजने वाला ही पाता है। खोजते-खोजते आखिर उसे एक बुजुर्ग बुड्ढा आदमी मिला। "गर्ज वाला बाबला" उससे पूछ बैठाबाबा आपको मालूम है कि अमृतफल किसके यहाँ है ? बूढ़े की कमर झुकी थी बाल बर्फ की तरह सफेद थे, बदन में झुर्रियाँ पड़ गई थीं। उसने हँसकर कहा कि अमृतफल तो मेरे ही खानदान में है, मुझे तो नहीं मिला परन्तु मेरा बड़ा भाई इसका मालिक है। यह सुनकर वह बहुत खुश हुआ और पता पूछकर बड़े भाई के के घर पहुँचा। यह भी बूढ़ा था और आँखें धँसी झुर्रियाँ पड़ी थीं परन्तु छोटे भाई से कुछ अच्छा था। बाल अधपके थे। सवाल करने पर वह भी मुस्कराया और कहा कि हाँ अमृतफल मेरे ही खानदान में है, जरूर लेकिन मैं बदनसीब मेरे हाथ नहीं लगा वह सिर्फ मेरे बड़े भाई को मिला है।

 उसे चैन कहाँ ? खोजता-खोजता उसके बड़े भाई के पास पहुँचा। वह दोनों से तगड़ा लेकिन आँखों पर ऐनक लगा रक्खी थी, उससे सवाल करने पर बूढ़े ने ऐनक से देखकर वही उत्तर दिया कि मेरा बड़ा भाई अमृतफल का मालिक है। उसकी हैरत बढ़ती ही जाती थी कि सभी अपने बड़े भाई के पास बताते हैं परन्तु उम्र में सभी एक से एक कम मालूम होते जाते हैं। खैर, वह फौरन चल पड़ा और कुछ देर बाद पते पर जा पहुँचा। वहाँ एक मनुष्य मिला जो बिल्कुल नौजवान था। सिर के बाल भँवरे की तरह काले थे। रोशन आँखें, सिर से पाँव तक सुडौल, कहीं झुर्री का नाम नहीं, यह दरवाजे के अन्दर तख्त पर बैठा हुक्का पी रहा था, इसे मेहमान समझकर उठा यथोचित स्वागत सत्कार किया और बातें होने लगीं।

 मुसाफिर ने पूछा क्या आपके पास अमृत फल है ? बड़े भाई ने हँसते हुए जवाब दिया कि है तो जरूर मुसाफिर ने कहा- "मैं इसी के पाने की इच्छा से हजारों मील से ठोकर खाता तलाश करता यहाँ पहुँचा हूँ बड़े भाई ने उत्तर दिया कि यह किसी-किसी बड़े अच्छे भाग्य वाले को ही मिलता है, सबको नहीं मिलता, परन्तु आप उसे देख सकते हैं दिखाने में तो कोई हर्ज नहीं मुसाफिर ने कहा कि अच्छा, कम से कम देख तो लूँ। बड़े भाई ने कहा इतनी जल्दी क्या है इतने लम्बे सफर से आप रहे हैं, जरा आराम करें थकावट दूर होते ही आप बखुशी देखें।

 मुसाफिर उसके घर मेहमान हो गया, बड़े भाई ने आवाज दी कि मुन्नू की माँ जरा इधर तो आना, एक खूबसूरत जवान स्त्री इस आवाज के साथ ही हाजिर हुई और हाथ बाँधकर हुक्म के इन्तजार में अदब के साथ खड़ी हो गई। बड़े भाई ने कहा- "मुन्नू की माँ आज खुश-किस्मती से तुम्हारे घर मेहमान आया है, स्नान के लिए गरम पानी दे दो और अच्छे से अच्छा खाना बनाओ।" स्त्री ने जबान तक नहीं खोली और घर में चली गई मिनटों में ही सब काम खत्म कर लिया, नहाने के कपड़े बगैरह का स्त्री ने खुद ही इन्तजाम कर दिया। बड़े भाई के साथ मुसाफिर चौके में खाना खाने बैठा तो निहायत साफ-सुथरा खाना, सुन्दर स्वादिष्ट भोजन ठीक से थाल में सजाकर सामने रख दिया। मेहमान बहुत खुश हुआ और बार-बार मेहमान नवाजी का शुक्रिया अदा करता रहा, बड़ा भाई मुस्कराता ही रहा। मुन्नी की माँ ने हाथ धुलाए और दोनों बैठक में चले गए। इसके बाद मुसाफिर ने अलग पलंग पर आराम किया। इसी प्रकार कई हफ्ते खत्म हो गए। मुसाफिर रोज सोचता कि अभी तक बड़े भाई ने अमृत फल नहीं दिखाया। वह जाने की भी सोचता परन्तु इन लोगों की खातिरदारी की खुशी को देखकर जाने के वास्ते कहने की हिम्मत ही पड़ती।

 एक दिन मुसाफिर ने कहा- "आपने मुझ पर बड़ी मेहरबानी की, इस तरह कोई अपने घर इतने दिन नहीं रहने देता परन्तु आप लोग खातिरदारी से नहीं उकताते अब मुझे जाना बहुत आवश्यक है और आपने अमृतफल भी अभी तक नहीं दिखाया, जिसकी ख्वाहिश मुझे यहाँ तक खींच लाई है।"

 बड़े भाई ने कहा- "यह आप क्या कह रहे हैं ? आप रोज तो अमृतफल देखते हैं और फिर भी इनकार करते   हैं, मैंने तो आपको खूब दिखाया, दिखाने में कोई कसर नहीं रखी आपने न पहचाना तो मैं क्या करूँ ?”मुसाफिर को यह सुनकर बड़ी हैरत हुई और कहा कि भाई न मैंने देखा और न आपने दिखाया, आखिर आप इस तरह क्यों कहते हैं ?बड़ा भाई जोर से कहकहा लगाकर हँसा और मुन्नू की माँ को आवाज दी, जरा इधर तो आना, मुसाफिर को अमृतफल दिखाना है।आवाज के साथ ही स्त्री आ गई। बड़े भाई ने कहा इन्हें अमृतफल दिखाओगी या मैं ही दिखाऊँ, स्त्री शरमा गई और आँचल से मुँह ढाँप लिया।

बड़े भाई ने कहा- "मुसाफिर यह मुन्नू की माँ ही अमृतफल है, जो मेरे हाथ लगी है। यह कई लड़कों को माँ है, ६५ वर्ष की है, मेरी उम्र ८३ वर्ष है परन्तु हम दोनों अब तक जवान हैं, जब से ब्याह कर आई है इसने एक बात भी ऐसी नहीं की जिससे मेरे दिल को ठेस लगे। तमाम जिन्दगी मुझ से कभी अनबन नहीं हुई "यह मेरा अमृतफल है।" यह फल जब से मेरे हाथ लगा मैं निहाल हो गया, इसने मेरा चाल-चलन सुधारा, लड़कों को राह पर लगाया, घर को बैकुण्ठ बना दिया। किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई। इसकी बरकत से घर में किसी बात की कमी नहीं, मेरे घर को स्वर्ग का नमूना बना दिया। मैं दरख्त हूँ, यह बेल है, जो मुझसे लिपटी रहती है। और यह औलाद खिले हुए फूल हैं। क्यों अब आपने देख लिया ? घर में नौकर-चाकर सब है परन्तु मेरी खिदमत यह अकेली ही करती है। किसी नौकर को मेरी खिदमत का हिस्सेदार नहीं बनाती और मैं भी हमेशा इसकी मुहब्बत और खिदमत का दम भरता हूँ। तुमने अब भी अमृतफल देखा या नहीं, यही सच्चा अमृतफल है। 

मुसाफिर की आँखें खुल गईं और इत्मीनान जाहिर किया कि ---

औरत अगर हो अच्छी तो घर का स्वर्ग-धाम है। 

औरत बुरी तो नर्क का फिर घर मुकाम है ।। 

औरत अगर है अच्छी तो मर्द बादशाह ।

हासिल है उसको दौलतोजर और मालोजाह ।। 

औरत अगर है नेक तो सब कुनव नेक है।" 

औरत से बढ़ कीमती कोई नहीं है शेष । 

मुसाफिर ने कहा यह सब तो मैंने खूब समझ लिया लेकिन यह क्या बजह है कि आप सबसे बड़े भाई और यह उम्र, आप छोटे भाई जितने ही छोटे हैं उतनी ही ज्यादा उम्र के मालूम पड़ते हैं। भाई ने कहा- "अच्छा चलिए यह राज भी जाहिर हो जायेगा।" बड़ा भाई मुसाफिर को लेकर छोटे भाई के घर आया और अपने भाई से कहा यह बहुत दूर से आए हैं। मेरे घर कई हफ्ते रहे हैं कुछ दिन तुम भी इन्हें ठहरालो और खातिर कर दो। वह अपने घर में गया, स्त्री से कहा कि बड़े भाई के मेहमान भाई के साथ आए हैं और अच्छे-अच्छे खाने दो, दावत करनी है। औरत ने नाराजगी जाहिर की और नाक-भौं चढ़ाकर किसी तरह बनाकर पटक कर चलती हुई। दोनों खाना खाकर उससे छोटे भाई के घर गए और वही बात पेश की, उसकी स्त्री तेजमिजाज थी, बोली- "बड़ा भाई वाला बना है मुसाफिर को घर लाया है, घर में लकड़ी तक नहीं, तुझे चूल्हे में झोंक दूँ या तेरे बड़े भाई को या मुसाफिर को।"

खैर, बहुत कहने-सुनने के बाद खिचड़ी पकाई और दोनों ने जम करके खाई, फिर सबसे छोटे भाई के भी घर गए और वही दरख्वास्त की, औरत हाँडी में चावल पका रही थी सुनते ही आग-बबूला हो गई और गुस्से में वही हाँडी अपने शौहर के सिर पर उठाकर पटक दी। हाँडी टूट गई और उसका मुँह (कड़ा) उसके गले में अटक गया, वह इसी तरह हाँडी की हँसुली पहने चावल से लथपथ चिल्लाता हुआ बाहर आया और रो-रोकर अपनी दर्दनाक कहानी सुनाने लगा। दोनों को उस पर तरस आया और उसकी मलहम-पट्टी की और बड़ारुपये देकर मुसाफिर को साथ वापस लाया और कहा – देखिए मुझे तो अमृतफल मिला है परन्तु मेरे भाइयों को विषफल मिला है। इसी सबब से वे बूढ़े होते जा रहे हैं। मैं उनकी बराबर मदद करता हूँ, लेकिन यह लोग अपनी बीबियों से तंग आ गये हैं और अपनी या अपनी बीबी की मौत की इन्तजारी करते हैं—इतना कहकर मुसाफिर को विदा कर दिया। मुसाफिर खुशी-खुशी अपने घर चला आया। वह अमृतफल देखना चाहता था, उसने अमृतफल देख लिया

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