पैदल चलने का इलाज
देश में एक पहुँचे हुए सन्यासी रहते थे- वे प्रख्यात थे कि उनके इलाज से कठिन रोगों के रोगी अच्छे हो जाते हैं। एक सरदार सिर दर्द की बीमारी से बहुत दुःखी थे। उन्हें चारपाई पर छट-पटाते हुए ही दिन गुजारना पड़ता था। बहुत इलाज कराने पर भी जब कोई लाभ न हुआ तो लोगों ने उसे सन्यासी की ही दवा लेने के लिए कहा। सामन्त ने अपने गुमाश्ते नाम के व्यक्ति को बढ़िया सवारी लेकर सन्यासी के पास भेजे और प्रारम्भिक भेंट धन देने के अतिरिक्त इलाज का भारी इनाम मिलने का भी सन्देश भिजवाया। गुमाश्ते नियत स्थान पर पहुँचे। वहाँ एक हृष्ट-पुष्ट गाय चराने वाले के अतिरिक्त और कोई दिखाई न पड़ा। उन्होंने उसी से सन्त का पता पूछा। गाय चराने वाले ने कहा – 'मैं ही वह सन्यासी हूँ।" इस पर उन्हें बहुत अचम्भा हुआ। इतना बड़ा सन्त और चिकित्सक गाय चराने जैसा काम करे, इस जिज्ञासा को उन्होंने प्रस्तुत किया तो सन्त ने इतना ही कहा—'मैं पैदल चलने को शरीर और मन की श्रेष्ठ साधना के रूप में ही अपनाये हुए हूँ।" सरदार के इलाज के लिए चलने का अनुरोध जब गुमाश्तों ने किया तो उन्होंने इतना ही उत्तर दिया। मैं किसी मरीज के घर में नहीं जाता। उन्हें ही मेरे यहाँ पैदल चलकर आना पड़ता है। दूत निराश होकर वापस लौट गये।
सरदार के पास जब कोई और चारा न रहा तो उसने पैदल चलकर सन्यासी तक पहुँचने का निश्चय किया और कई हफ्तों में उतनी दूर की मंजिल पार करके चिकित्सक तक पहुँचा।
सन्त ने मरीज को भली प्रकार देखा परखा और उसे एक कीमती दवा की पुड़िया देते हुए कहा इसकी एक-सौ खुराकों का प्रयोग करने पर आपका मर्ज जरूर अच्छा हो जायगा । उस दवा के प्रयोग की विधि यह बताई कि जब माथे पर पसीना आवे तब एक पुड़िया खोलकर उसे सिर पर मल लिया जाए।
निर्देश के अनुसार सरदार को वापस भी पैदल ही लौटना पड़ा। पंसीना सिर पर निकले इसका एक ही उपाय था तेज चाल से यात्रा करना । उसने वही किया घर लौटने में उसे बीस दिन लगे। जब तक सिर पर पसीना न निकलता तब तक उसे चलते ही रहना पड़ता। आखिर दवा का प्रयोग तो तभी होना था जब सिर पर पसीना निकले ।
घर लौटने तक सरदार का सिर दर्द पूरी तरह अच्छा हो गया। बची हुई दवा का क्या किया जाय ? इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए उसने गुमाश्ते फिर सन्त के पास भेजे। अल्लामा ने हँसते हुए कहा- "वह दवा मामूली मिट्टी भर थी उसे फेंक दिया जा सकता है। असली इलाज तो लम्बा पैदल सफर करना और उसी तरह वापस लौटना था।
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