दृढ़ विश्वास से भगवत दर्शन
किसी गाँव में एक चोर रहता था। वह रात को चोरी करने के लिये निकला। एक महाजन के यहाँ हरि कथा हो रही थी, उसमें पण्डितजी भगवान के आभूषणों का वर्णन कर रहे थे कि उन्होंने अपने शरीर पर वेशकीमती आभूषण धारण किये हैं, सोने का रत्न जड़ित मुकुट है, गले में कीमती कंठे शोभायमान हैं, ये शब्द चोर के कान में पड़े उसने वह माल चुराने का निश्चय किया। उसने सोचा इसका पता पण्डितजी को है। वह वहीं छिपकर बैठ गया। कथा समाप्ति के बाद पण्डितजी सामान बटोरकर घर रवाना हुये, चोर ने रास्ते में घेर लिया और कहा कि या तो जो तुम्हारे पास माल है दे दो, नहीं तो उस आदमी का पता बताओ कि जिसके शरीर पर करोड़ों का माल है, जिसकी चर्चा तुमने अभी की थी।
पण्डितजी घबरा गये उन्होंने पीछा छुड़ाने के लिये कहा कि वह आदमी जमुना किनारे जंगल में गायें चराता है व बंसी बजाता है। बस चोर पण्डितजी को छोड़ जमुना किनारे, खोज में चल दिया व इधर-उधर ढूँढ़ने लगा । ढूँढ़ते-ढूँढ़ते पाँच-छह दिन बीत गये परन्तु कहीं पता नहीं लगा। भूख से पीड़ित व हताश होकर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद भगवान कृष्ण आभूषण युक्त (जैसा पण्डितजी ने कहा था) गोपों के झुण्ड में नजर आये उनको देखते ही चोर प्रसन्न हो गया और हाथ में डण्डा लेकर भगवान पर लपका। भगवान उसका मतलब समझ गये, उन्होंने पूछा "तू कौन है ? यहाँ किसलिये आया है ?” उसने कहा- 'मैं चोर हूँ, जो तुमने आभूषण पहने हैं, उनको मैं चुराने आया हूँ।" भगवान ने वहीं पास में खजाना बतला दिया कि तुझसे जितना माल उठे, उतना ले जा ।
बस चोर प्रसन्न होकर उससे जितना धन उठा गठरी में बाँधकर घर ले आया। वह पण्डित को इनाम देने के लिये आया और कहने लगा कि पण्डितजी साहूकार तो अच्छा मालदार बतलाया । पण्डितजी आश्चर्य में डूब गये और कहने लगे कि भाई वह साहूकार नहीं है वह भगवान कृष्ण थे। उनके दर्शन हमें भी कराओ बस पण्डितजी चोर के पीछे हो लिये, वह वहाँ जाकर छिप गये। थोड़ी देर बाद चोर को भगवान दीख गये परन्तु पण्डितजी को नहीं दीखे, तब चोर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि प्रभो आप पण्डितजी को क्यों नहीं दर्शन देते ? भगवान कहने लगे कि जिस प्रकार तेरा दृढ़ विश्वास है वैसा पण्डितजी का नहीं है इसलिये उनको दर्शन नहीं होते।
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